आधुनिक होता हमारा लाइफस्टाइल, नशों का सेवन, खराब खानपान, प्रदूषण, कम शारीरिक श्रम और बढ़ता तनाव भारतीय दंपतियों में निसंतानता (इन्फर्टिलिटी) की समस्या को बढ़ावा दे रहा है। द इंडियन सोसाइटी ऑफ असिस्टेड रिप्रोडक्शन की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय आबादी का लगभग 10 से 15 प्रतिशत लोग इन्फर्टिलिटी की समस्या से प्रभावित है। WHO के अनुसार भारत में चार में से एक कपल को गर्भ धारण करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। शहरी क्षेत्रों में इन्फर्टिलिटी की समस्या ज्यादा देखने को मिलती है। यहां पर छह में से एक दंपत्ति निसंतानता से जूझ रहा है। ऐसे में दंपती IVF तकनीक का उपयोग कर रहे हैं। जिसमें इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) होता है। इसे आम बोलचाल की भाषा में टेस्ट ट्यूब बेबी भी कहते हैं। यह प्राकृतिक तौर पर गर्भधारण में सफल न हो रहे दंपतियों के लिए गर्भधारण का एक कृत्रिम तकनीक है।
विश्व आईवीएफ दिवस
विश्व आईवीएफ दिवस (World IVF Day) हर साल 25 जुलाई को मनाया जाता है। आईवीएफ का चलन पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ता जा रहा है। किसी कारण से अगर महिला मां नहीं बन पाती तो यह प्रक्रिया उनके लिए वरदान है। निसंतानता की समस्या से जूझ रहे दंपत्तियों के लिए यह एक उम्मीद की किरण पैदा करता है। इस तकनीक के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए प्रतिवर्ष 25 जुलाई को विश्व आईवीएफ दिवस मनाया जाता है। मेडिकल साइंस ने निसंतानता का इलाज वर्षों पहले ही निकाल लिया था। लंबी स्टडी और प्रयोगों के बाद गर्भधारण की कृत्रिम प्रक्रिया ढूंढ ली गई। इस प्रक्रिया को ही आईवीएफ कहा जाता है।
1978 में पहले IVF बच्चे का हुआ था जन्म
प्रतिवर्ष 25 जुलाई को आईवीएफ दिवस वैश्विक स्तर पर मनाया जाता है। इस दिन को मनाने की शुरुआत 1978 से हुई, जब आईवीएफ के जरिए पहले बच्चे का जन्म हुआ। तब से हर साल 25 जुलाई को विश्व आईवीएफ दिवस मनाया जाने लगा। यह दिन उन भ्रूण वैज्ञानिकों को समर्पित किया गया है, जो जिंदगी बचाने के साथ ही जिंदगी देने का कार्य किया। 10 नवंबर, 1977 को इंग्लैंड में लेस्ली ब्राउन नामक महिला ने डॉक्टर पैट्रिक स्टेप्टो और रॉबर्ट एडवर्ड्स की मदद से इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) प्रक्रिया शुरू की थी, जिसके बाद 25 जुलाई 1978 में पहली टेस्ट-ट्यूब बेबी लुईस ब्राउन का जन्म हुआ था। इसी के चलते हर साल 25 जुलाई को विश्व आईवीएफ दिवस या वर्ल्ड एंब्रायोलॉजिस्ट डे के तौर पर मनाया जाता हैं।
भारत में डॉ. मुखर्जी पहले टेस्ट ट्यूब बेबी डिलीवरी कराने वाले डॉक्टर
विश्व में पहली टेस्ट ट्यूब बेबी के पांच माह बाद ही 3 अक्टूबर 1978 को डॉ. सुभाष मुखर्जी टेस्ट ट्यूब बेबी डिलीवरी कराने वाले भारत के पहले और दुनिया के दूसरे डॉक्टर बने। अब तक दुनिया में करीब 80 लाख टेस्ट ट्यूब बेबी जन्म ले चुके हैं। दुनिया भर में करीब 5 लाख बच्चे प्रतिवर्ष आईवीएफ़ तकनीक से जन्म ले रहे हैं। निसंतानता के बढ़ते मामलों और इसके इलाज की मांग ने इस क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा दिया।
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आज दाता (Donar) शुक्राणुओं और अंडाणुओं का उपयोग भी आम होता जा रहा है। तकनीक इतनी उन्नत है कि एकल-जीन उत्परिवर्तन की संभावना को कम करने के लिए भ्रूण का भी आनुवंशिक परीक्षण किया जा सकता है। यहां तक जो महिलाएं गर्भधारण करने में असमर्थ हैं वे सरोगेसी का विकल्प भी चुन सकती हैं। इसमे भ्रूण विकसित करने के लिए किसी दूसरी महिला का गर्भ उपयोग किया जाता है। पूरे भारत में अनुमानित 1800 आईवीएफ केंद्र और कई आईयूआई क्लीनिक हैं।
6 में से 1 व्यक्ति को निसंतानता की समस्या
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबित दुनिया भर में हर 6 में से 1 व्यक्ति निसंतानता की समस्या का सामना कर रहा है। अनुमानित कुल वयस्क आबादी के लगभग 17-18 फीसदी लोग प्रजनन की समस्या से प्रभावित हैं। ऐसे में आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) उन लोगों के लिए एक नया विकल्प है, जो प्राकृतिक तरीके से ही नहीं बल्कि कई अन्य प्रजनन से जुड़ी चिकित्सा विधाओं को अपनाने के बाद भी गर्भधारण नहीं कर पाते हैं।
निसंतानता की समस्या में वरदान बनी IVF तकनीक
IVF ऐसी महिलाओं के लिए वरदान चुका है, जो सामान्य आयु को पार कर चुकी हैं और उन्हे गर्भ धरण नहीं हुआ। या जिनके पुरुष साथी प्रजनन में अक्षम हैं या जो अन्य किसी आनुवंशिक समस्याओं या बीमारियों से पीड़ित है, जो प्रजनन में बाधा उत्पन्न कर रही हैं। IVF आमतौर पर निषेचन में सहायता के लिए किया जाता है। आईवीएफ प्रक्रिया पांच चरणों में सम्पन्न होती है- उत्तेजना, अंडा पुनर्प्राप्ति, गर्भाधान, भ्रूण संस्कृति व भ्रूण स्थानांतरण।
IVF तकनीक और साइड इफेक्ट
आईवीएफ जैसी फर्टिलिटी ट्रीटमेंट से गुजरना महिलाओं पर शारीरिक और मानसिक दबाव डालता है। इसमें एक से अधिक बच्चे हो सकते हैं। मल्टीपल बर्थ से कई तरह की जटिलताएं आ सकती हैं और प्रेगनेंसी में भी खतरा बना रहता है। वही कुछ महिलाओं में प्रेगनेंसी के शुरुआती महीनों में मिसकैरीज की समस्या भी हो सकती है। हार्मोनल इंजेक्शन की वजह से इंजेक्शन वाली जगह पर दर्द, मूड स्विंग्स, हॉट फ्लैशेज, जननांगों में सूखापन, पेट फूलना, ब्रेस्ट में दर्द, सिरदर्द, वजन बढ़ने, मतली, चक्कर आने, ब्लीडिंग होना, थकान, नींद आने में दिक्कत जैसे साइड इफेक्ट आते हैं। वही इस पूरी प्रक्रिया में तकरीबन डेढ़ से दो लाख रुपए का खर्च भी आता है। कई बार दंपतियों को यह प्रक्रिया दो या अधिक बार भी करानी पड़ती है।
IVF ओर सामान्य बेबी में फर्क?
IVF और नार्मल बेबी में कोई फर्क नहीं होता हैl आईवीएफ प्रेगनेंसी में शुरुआती दौर में चलने वाली कुछ दवाइयों की खुराक सामान्य प्रेगनेंसी से थोड़ी अलग होती है। आईवीएफ उपचार की प्रक्रिया में भ्रूण को आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक से विशेष लैब में तैयार किया जाता है और एम्ब्रियो ट्रान्सफर की प्रक्रिया से महिला के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया जाता है। भ्रूण का निषेचन भले लेब में हुआ हो लेकिन स्थानांतरण के बाद प्राकृतिक गर्भधारण में जिस प्रकार भ्रूण का विकास महिला के गर्भ में होता है ठीक उसी प्रकार आईवीएफ़ में भी भ्रूण का विकास सामान्य गर्भावस्था के जैसे ही महिला के गर्भ में होता है। आइवीएफ प्रक्रिया के दौरान फल्लोपियन ट्यूब में होने वाली पूरी प्रक्रिया ट्यूब से बाहर कृत्रिम वातावरण में कराया जाता है इसलिए आइवीएफ तकनीक को पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के नाम से जाना जाता था।
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