Sunday, December 15, 2024
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Instant Divorce: जानें सुप्रीम कोर्ट के ‘झट तलाक’ फैसले के मायने?

Instant Divorce: सुप्रीम कोर्ट ने जल्द/झट तलाक पर फैसला सुनाकर अदालतों को एक रास्ता दिखाया है। सर्वोच्च अदालत पहल भी कह चुकी है कि जब विवाह को बचाने की जरा भी गुंजाइश नहीं बची हो तो दोनों पक्षों को तकलीफ में छोड़ना व्यर्थ है। ऐसी स्थिति मे अदालतें झट तलाक पर फैसला ले सकती है।

सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 1 मई 2023, दिन सोमवार को कहा है कि अगर किसी विवाह को बचाना संभव नहीं है तो वह आर्टिकल 142 के तहत अपने अधिकार का प्रयोग करके दोनों पक्षों की सहमति से सीधे तलाक की अनुमति दे सकता है। इसके लिए संबंधित पक्षों को पारिवारिक न्यायालयों में 6 से 18 महीने तक सहमति से तलाक लेने के लिए इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है।

किस मामले में सुनाया फैसला?

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल की अगुवाई वाली बेंच ने यह फैसला 2014 के एक मामले में सुनाया है। इसमें शिल्पा शैलेष बनाम वरुण श्रीनिवासन की ओर से भारतीय संविधान की धारा 142 के तहत सर्वोच्च अदालत से तलाक के आदेश हेतु अपील की गई थी।

हिंदू विवाह कानून में तलाक की क्या प्रक्रिया है?

हिंदू विवाह कानून, 1955 की धारा 13बी में आपसी सहमति से तलाक लेने की व्यवस्था है। इसमें दोनों ही पक्ष जिला अदालत (Family Court) में इस आधार पर तलाक की अर्जी दे सकते हैं कि वह दोनों एक साल या इससे अधिक समय से अलग रह रहे हैं और उनका अब साथ में रहने की कोई गुंजाइशन नहीं बची है या वह दोनों आपसी सहमति से विवाह के बंधन से मुक्त होना चाहते हैं। हालांकि हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 13बी (2) के तहत एक कूलिंग पीरियड का भी प्रावधान है।

क्या है कूलिंग पीरियड?

हिंदू विवाह कानून, 1955 की धारा 13बी (2) में यह प्रावधान है कि तलाक का आदेश प्राप्त करने के लिए याचिका दायर करने की तारीख से दोनों पक्षों को 6 से 18 महीने का इंतजार करना होता है। 6 महीने की यह अवधि इसलिए दी जाती है कि अगर इस दौरान दोनों पक्ष विवाह में बने रहने के लिए सहमत हो जाते हैं तो वह अपनी अर्जी वापस ले सकें। इसे कूलिंग पीरियड कहते हैं।

आखिर कब जारी होता है तलाक का आदेश?

जब कूलिंग पीरियड का एक निश्चित समय गुजर जाता है और अदालत दोनों पक्षों की सुनवाई पूरी कर लेती है, अदालत चाहे तो अपने स्तर पर जांच भी करा सकती है, फिर संतुष्ट हो जाने के बाद विवाह को समाप्त करने के साथ तलाक का आदेश जारी कर सकती है, जो कि आदेश वाले दिन से लागू हो जाता है। तलाक के प्रावधान तब लागू होते हैं, जब विवाह के कम से कम एक वर्ष बीत चुके हों।

इन आधारों पर भी है तलाक का प्रावधान

क्रूरता, व्यभिचार, परित्याग, धर्म परिवर्तन, विक्षिप्तता, कुष्ठ रोग, यौन संबंधी रोग, संन्यास ग्रहण और सात साल तक पति या पत्नी में से किसी के बारे में कोई सूचना नहीं होने पर उसे मृत मानने की स्थिति में भी दोनों पक्षों में से किसी एक पति या पत्नी की ओर से तलाक मांगा जा सकता है। यही नहीं अगर पत्नी की शादी 15 साल या अवयस्क उम्र में हो चुकी हो तो वह 18 की होने पर तलाक की मांग कर सकती है।

क्या कुछ मामलों में जल्द तलाक का प्रावधान है?

बहुत ही दुर्लभ मामलों में जल्द तलाक का भी प्रावधान है, जैसे कि बहुत मुश्किल हालात या दुराचार के केस में। ऐसे मामलों में पारिवारिक न्यायालयों में 6 महीने की कूलिंग पीरियड से भी छूट मिल सकती है। इसके लिए अदालत में विशेष याचिका डाली जा सकती है। धारा 14 के तहत इसके लिए विवाह का एक वर्ष पूर्ण होना भी आवश्यकता नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने पहले क्या कहा था?

2021 में अमित कुमार बनाम सुमन बेनीवाल मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “जहां विवाह के बचने की जरा सी भी संभावना है तो 6 महीने के कूलिंग पीरियड का पालन होना ही चाहिए। लेकिन, जहां इसकी जरा भी गुंजाइश नहीं है तो विवाह में शामिल पक्षों के दुख को लंबा खींचना व्यर्थ है।” सुप्रीम कोर्ट यही याचिका डाली गई थी कि जब सहमति से तलाक हो रहा है तो 6 महीने का इंतजार क्यों?

यह भी पढ़ें: Uniform Civil Code: क्या है समान नागरिक संहिता? जाने यूसीसी से जुड़े कुछ विशेष तथ्य

आर्टिकल 142 का इस्तेमाल

मौजूदा प्रावधानों के तहत अगर दोनों पक्ष बहुत तेजी से तलाक की प्रक्रिया पूरी करना चाहते हैं तो वह आर्टिकल 142 के प्रावधानों के तहत सुप्रीम कोर्ट से इसकी गुहार लगा सकते हैं। हालिया मामले में यही हुआ है और सर्वोच्च अदालत ने अपने इसी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए तलाक का आदेश जारी किया है।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में ऐसी कई याचिकाएं दायर की गई थीं, जिसमें यही सवाल उठाया गया था कि आपसी सहमति के मामले में भी कूलिंग पीरियड तक इंतजार जरूरी क्यों? यह मामला 29 जून, 2016 को संविधान पीठ में गया था। जस्टिस एसके कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एएस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी की बेंच ने इस पर सुनवाई करने के बाद 29 दिसंबर, 2022 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

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