Sunday, April 27, 2025
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आपसी प्रेम सद्भावऔरभाईचारेकापर्वहै ‘होली’!

&डा0 जगदीश गांधी] शिक्षाविद् एवं

संस्थापक&प्रबन्धक] सिटी मोन्टेसरी स्कूल] लखनऊ

होलिका का दहन समाज की समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है

        होली भारत के सबसे पुराने पर्वों में से एक है। होली की हर कथा में एक समानता है कि उसमें ‘असत्य पर सत्य की विजय’ और ‘दुराचार पर सदाचार की विजय’ का उत्सव मनाने की बात कही गई है। इस प्रकार होली लोक पर्व होने के साथ ही अच्छाई की बुराई पर जीत, सदाचार की दुराचार पर जीत व समाज में व्याप्त समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता व दुश्मनी को भूलकर एक-दूसरे के गले मिलते हैं और फिर ये दोस्त बन जाते हैं। किसी कवि ने होली के सम्बन्ध में कहा है कि – नफरतों के जल जाएं सब अंबार होली में। गिर जाये मतभेद की हर दीवार होली में।। बिछुड़ गये जो बरसों से प्राण से अधिक प्यारे , गले मिलने जाऐं वे इस बार होली में।।

भारतीय संस्कृति का परिचायक है होली

        होली को लेकर देश के विभिन्न अंचलों में तमाम मान्यतायें हैं और शायद यही विविधता में एकता, भारतीय संस्कृति का परिचायक भी है। उत्तर पूर्व भारत में होलिकादहन को भगवान कृष्ण द्वारा राक्षसी पूतना के वध दिवस के रूप में मनाया जाता है तो दक्षिण भारत में मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने कामदेव को तीसरा नेत्र खोल भस्म कर दिया था। तत्पश्चात् कामदेव की पत्नी रति के दुख से द्रवित होकर भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया , जिससे प्रसन्न होकर देवताओं ने रंगों की वर्षा की। इसी कारण होली की पूर्व संध्या पर दक्षिण भारत में अग्नि प्रज्ज्वलित कर उसमें गन्ना , आम की बौर और चन्दन डाला जाता है। यहाँ गन्ना कामदेव के धनुष , आम की बौर कामदेव के बाण, प्रज्ज्वलित अग्नि शिव द्वारा कामदेव का दहन एवं चन्दन की आहुति कामदेव को आग से हुई जलन हेतु शांत करने का प्रतीक है।

प्रभु के प्रति अटूट भक्ति एवं निष्ठा के प्रसंग की याद दिलाता है यह महान पर्व

        होली पर्व को मनाये जाने के कारण के रूप में एक मान्यता यह भी है कि प्राचीन काल में हिरण्यकश्यपु नाम का एक अत्यन्त बलशाली एवं घमण्डी राजा अपने को ही ईश्वर मानने लगा था। हिरण्यकश्यपु ने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकश्यपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का परम भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से कुद्ध होकर हिरण्यकश्यपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए , परंतु भक्त प्रह्लाद ने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकश्यपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकश्यपु के आदेश पर होलिका प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से उसे अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। किन्तु आग में बैठने पर होलिका तो जल गई परंतु ईश्वर भक्त प्रह्लाद बच गये। इस प्रकार होलिका के विनाश तथा भक्त प्रह्लाद की प्रभु के प्रति अटूट भक्ति एवं निष्ठा के प्रसंग की याद दिलाता है यह महान पर्व।

प्रहलाद ने बचपन में ही प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लिया था

        यह परमपिता परमात्मा की इच्छा ही थी कि असुर प्रवृत्ति तथा ईश्वर के घोर विरोधी दुष्ट राजा हिरण्यकश्यप के घर में ईश्वर भक्त प्रहलाद का जन्म हुआ। प्रहलाद ने बचपन में ही प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लिया था। निर्दयी हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रहलाद से कहा कि यदि तू भगवान का नाम लेना बंद नहीं करेंगा तो मैं तुझे आग में जला दूँगा। उसके दुष्ट पिता ने प्रहलाद को पहाड़ से गिराकर , जहर देकर तथा आग में जलाकर तरह-तरह से घोर यातनायें दी। प्रहलाद ने अपने पिता हिरण्यकष्यप से कहा कि पिताश्री यह शरीर आपका है इसका आप जो चाहे सो करें , किन्तु आत्मा तो परमात्मा की है। इसे आपको देना भी चाहूँ तो कैसे दे सकता हूँ। प्रहलाद के चिन्तन में भगवान आ गये तो हिरण्यकश्यप जैसे ताकतवर राजा का अंत नृसिंह अवतार के द्वारा हो गया। इसलिए हमें भी प्रहलाद की तरह अपनी इच्छा नहीं वरन् प्रभु की इच्छा और प्रभु की आज्ञा का पालन करते हुए प्रभु का कार्य करना चाहिए।

सभी धर्मों के लोग मिलकर मनाते हैं होलिकोत्सव 

        होली जैसे पवित्र त्योहार के सम्बन्ध में सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है। भारत के अनेक मुस्लिम कवियों ने अपनी रचनाओं में इस बात का उल्लेख किया है कि होलिकोत्सव केवल हिंदू ही नहीं अपितु मुसलमान लोग भी मनाते हैं। इसका सबसे प्रामाणिक इतिहास की तस्वीरे मुगलकाल की हैं और इस काल में होली के किस्से उत्सुकता जगाने वाले हैं। इन तस्वीरों में अकबर को जोधाबाई के साथ तथा जहाँगीर को नूरजहाँ के साथ होली खेलते हुए दिखाया गया है। शाहजहाँ के समय तक होली खेलने का मुगलिया अंदाज ही बदल गया था। इतिहास में वर्णन है कि शाहजहाँ के जमाने में होली को ‘ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी’, रंगों की बौछार, कहा जाता था। अंतिम मुगल बादशाह शाह जफर के बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाते थे।

प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की परम्परा को बनाये रखने की आवश्यकता

        होली रंगों का त्योहार है, हँसी-खुशी का त्योहार है। लेकिन होली के भी अनेक रूप देखने को मिलते हैं। प्राकृतिक रंगों के स्थान पर रासायनिक रंगों का प्रचलन, नशेबाजी की बढ़ती प्रवृत्ति और लोक-संगीत की जगह फिल्मी गानों का प्रचलन इसके कुछ आधुनिक रूप है। पहले जमाने में लोग टेसू और प्राकृतिक रंगों से होली खेलते थे। वर्तमान में अधिक से अधिक पैसा कमाने की होड़ में लोगों ने बाजार को रासायनिक रंगों से भर दिया है। वास्तव में रासायनिक रंग हमारी त्वचा के लिए काफी नुकसानदायक होते हैं। इन रासायनिक रंगों में मिले हुए सफेदा, वार्निश, पेंट, ग्रीस, तारकोल आदि की वजह से हमको खुजली और एलर्जी होने की आशंका भी बढ़ जाती है। इसलिए होली खेलने से पूर्व हमें बहुत सावधानियाँ बरतनी चाहिए। हमें चंदन , गुलाबजल , टेसू के फूलों से बना हुआ रंग तथा प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की परंपरा को बनाये रखते हुए प्राकृतिक रंगों की ओर लौटना चाहिए।

होली पर्व का मुख्य उद्देश्य मानव कल्याण ही है

        होली पर्व के पीछे तमाम धार्मिक मान्यताएं, मिथक, परम्पराएं और ऐतिहासिक घटनाएं छुपी हुई हैं पर अंततः इस पर्व का मुख्य उद्देश्य मानव-कल्याण ही है। लोकसंगीत, नृत्य, नाट्य, लोककथाओं, किस्से – कहानियों और यहाँ तक कि मुहावरों में भी होली के पीछे छिपे संस्कारों , मान्यताओं व दिलचस्प पहलुओं की झलक मिलती है। होली को आपसी प्रेम एवं एकता का प्रतीक माना जाता है। होली हमें सभी मतभेदों को भुलाकर एक-दूसरे को गले लगाने की प्रेरणा प्रदान करती है। इसके साथ ही रंग का त्योहार होने के कारण भी होली हमें प्रसन्न रहने की प्रेरणा देती है। इसलिए इस पवित्र पर्व के अवसर पर हमें ईर्ष्या , द्वेष , कलह आदि बुराइयों को दूर करके आपसी प्रेम , सद्भाव और भाईचारे को बढ़ाना चाहिए। वास्तव में हमारे द्वारा होली का त्योहार मनाना तभी सार्थक होगा जबकि हम इसके वास्तविक महत्व को समझकर उसके अनुसार आचरण करें। इसलिए वर्तमान परिवेश में जरूरत है कि इस पवित्र त्योहार पर आडम्बरता की बजाय इसके पीछे छुपे हुए संस्कारों और जीवन-मूल्यों को अहमियत दी जाए तभी व्यक्ति , परिवार , समाज और राष्ट्र सभी का कल्याण होगा।

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Sanjeev Shukla
Sanjeev Shuklahttps://www.rashtrabandhu.com
He is a senior journalist recognized by the Government of India and has been contributing to the world of journalism for more than 20 years.
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